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संस्कृति पुनरुत्थान न्यास के माध्यम से देश में एक अनोखा और एक मात्र विश्वविद्यालय साकार होने जा रहा है|गौमाता केन्द्रित सारे विषयों का अभ्यासक्रम एक ही छत्रछाया में निशुल्क उपलब्ध कराने का हमारा संकल्प है|
गौमाता में साक्षात् ३३ करोड़ देवातओंका वास है, ऐसी मान्यता है और इसे शास्त्रों का भी आधार है| गत कुछ दशको से गौमाता का महत्व और महानता को हम विस्मृति में खोता हुआ देख रहे हैं- जिससे समाज भी अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और आध्यात्मिक गरिमा से भी दूर जाता हुआ प्रतीत होता है|
गौमाता के संवर्धन और संरक्षण के माध्यम से अपना समाज अपनी सारी खोई हुई गरिमा को पुन: प्राप्त कर सके| स्वावलंबी नहीं, अपितु परस्परावलंबी समाज अपनीशांति, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि के मार्ग पर बढ़ सके, इसी उद्दयेश से प्रेरित इस पुनीत कार्य का आरम्भ हो रहा है|
को कटने से अगर बचाना है तो प्रथम इसके कारण पर ध्यान देना होगा| उपरी स्तर पर आर्थिक कारण दृश्य होंगे, जिससे किसान को आर्थिक दृष्टि से गौमाता को पालना कठिन होता जा रहा है और गौमाता कटने से कारखानेदार (कॉर्पोरेट जगत) को अधिक मात्रा में धन लाभ होता है, लेकिन साथ-साथ सांस्कृतिक आक्रमण भी एक बड़ा कारण है| पश्चिमी लोगो को पता है कि जब तक गौमाता भारत में है तब तक हम उसे पूर्ण रूप से गुलाम नहीं बना सकते, इसी कारण गौमाता को कटवाने में इनका विशेष बल होता है|
यह सत्य है कि पंचगव्य आधारित करीब ३५० अलग-अलग औषधिया, खाद एवं उत्पाद बनते हैं जिससे गौपालक और किसान की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है| परन्तु हमें महत्व का पहलू भी स्मरण करना होगा कि गौमाता कोई कारखाना नहीं या कोई कच्चे माल का स्रोत नहीं है| गौमाता तो हमारी जन्मदात्री माता वत ही है| गौमाता से मिलने वाले उत्पाद हमारे लिए दोयम है वस्तुतःगौमाता का पुनीत आशीर्वाद और गौमाता का सात्त्विक सान्निध्य ही हमारे लिए प्राथमिकता है, यही हमारे लिए वरेण्य है|गौमाता है इसीलिए हम हैं, यह बात अधिक महत्त्व की है|“यतो गावः ततो वयं”, अपने शास्त्रों में भी यही बताया है|
सामाजिक उन्नति के लिए अनेक प्रयत्न अनेक स्तर पर अविरत हो रहे हैं| उन्ही सारे प्रयत्नों में हमारा भी एक छोटासा प्रयत्न याने इस सामजिक दिव्य यज्ञ में हमारी एक छोटीसी समिधा का अर्पण है|